राग दरबारी (उपन्यास) : श्रीलाल शुक्ल
रुप्पन बाबू स्थानीय नेता थे। उनका व्यक्तित्व इस आरोप को काट देता था कि इण्डिया में नेता होने के लिए पहले धूप में बाल सफ़ेद करने पड़ते हैं। उनके नेता होने का सबसे बड़ा आधार ये था कि वे सबको एक ही निगाह से देखते थे। थाने में दरोगा और हवालात में बैठा हुआ चोर- दोनों उनकी निगाह में एक थे। उसी तरह इम्तहान में नकल करने वाला विद्यार्थी और कालिज के प्रिंसिपल उनकी निगाह में एक थे। वे सबको दयनीय समझते थे, सबका काम करते थे, सबसे काम लेते थे। उनकी इज्जत थी कि पूँजीवाद के प्रतीक दुकानदार उनके हाथ सामान बेचते नहीं, अर्पित करते थे और शोषण के प्रतीक इक्केवाले उन्हें शहर तक पहुँचाकर किराया नहीं, आशेर्वाद माँगते थे। उनकी नेतागिरी का प्रारंभिक और अंतिम क्षेत्र वहाँ का कालिज था, जहाँ उनका इशारा पाकर सैकड़ों विद्यार्थी तिल का ताड़ बना सकते थे और जरूरत पड़े तो उस पर चढ़ भी सकते थे। वे पैदायशी नेता थे क्योंकि उनके बाप भी नेता थे। उनके बाप का नाम वैद्यजी था।
वे दुबले-पतले थे, पर लोग उनके मुँह नहीं लगते थे। वे लम्बी गरदन, लंबे हाथ और लंबे पैर वाले आदमी थे। जननायकों के लिए ऊल-जलूल और नये ढंग की पोशाक अनिवार्य समझकर वे सफ़ेद धोती और रंगीन बुश्शर्ट पहनते थे और गले में रेशम का रूमाल लपेटते थे। धोती का कोंछ उनके कंधे पर पड़ा रहता था। वैसे देखने में उनकी शक्ल एक घबराये हुए मरियल बछड़े की-सी थी, पर उनका रौब पिछले पैरों पर खड़े हुए एक हिनहिनाते घोड़े का-सा जान पड़ता था।
वे पैदायशी नेता थे क्योंकि उनके बाप भी नेता थे। उनके बाप का नाम वैद्यजी था।
अध्याय 3. आपेक्षिक घनत्व माने रिलेटिव डेंसिटी
दो बड़े और छोटे कमरों का एक डाकबँगला था जिसे डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने छोड़ दिया था। उसके तीन ओर कच्ची दीवारों पर छ्प्पर डालकर कुछ अस्तबल बनाये गये थे। अस्तबलों से कुछ दूरी पर पक्की ईंटों की दीवार पर टिन डालकर एक दुकान-सी खोली गयी थी। एक ओर रेलवे-फाटक के पास पायी जाने वाली एक कमरे की गुमटी थी। दूसरी ओर एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे एक कब्र-जैसा चबूतरा था। अस्तबलों के पास एक नये ढंग की इमारत बनी थी जिस पर लिखा था, 'सामुदायिक मिलन-केन्द्र , शिवपालगंज।' इस सबके पिछवाडे़ तीन-चार एकड़ का ऊसर पड़ा था जिसे तोड़कर उसमें चरी बोयी गयी थी। चरी कहीं-कहीं सचमुच ही उग आयी थी। हम असली भारतीय विद्यार्थी हैं;हम नहीं जानते कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है; पक्का फ़र्श किसको कहते हैं ; सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है।
इन्हीं सब इमारतों के मिले-जुले रुप को छंगामल विद्यालय इण्टरमीजिएट कालिज, शिवपालगंज कहा जाता था। यहाँ से इण्टरमीजिएट पास करने वाले लड़के सिर्फ़ इमारत के आधार पर कह सकते थे कि हम शांतिनिकेतन से भी आगे हैं; हम असली भारतीय विद्यार्थी हैं;हम नहीं जानते कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है; पक्का फ़र्श किसको कहते हैं ; सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है। हमने विलायती तालीम तक देशी परम्परा में पायी है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं! हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है , बंद कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।
छंगामल कभी ज़िला-बोर्ड के चेयरमैन थे। एक फर्जी प्रस्ताव लिखवाकर उन्होंने बोर्ड के डाकबँगले को कालेज इस कॉलिज़ की प्रबन्ध-समिति के नाम उस समय लिख दिया था जब कॉलिज के पास प्रबन्ध-समिति को छोड़कर कुछ नहीं था। लिखने की शर्त के अनुसार कॉलिज का नाम छंगामल विद्यालय पड़ गया था।
इस देश के निवासी परम्परा से कवि हैं। चीज़ को समझने के पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते हैं। भाखड़ा-नंगल बाँध को देखकर वे कहते हैं, "अहा! अपना चमत्कार दिखाने के लिए, देखो, प्रभु ने फिर से भारत-भूमि को ही चुना।ऑपरेशन -टेबल पर पड़ी हुई युवती को देखकर वे मतिराम-बिहारी की कविताएँ दुहराने लग सकते हैं।